Monday 15 December 2014


आओ खेद करें



प्रधान सेवक के देश में खेद की खेती शुरू हुई है। खेद यानि अफसोस ।


कैब में बलात्कार हुआ , गृहमंत्री ने इसे शर्मनाक बताया


सरहद पर शहीद हुए संकल्प की चिता तिरंगे में लिपटी मां की गोद में पहुंची , सरकार ने दुख व्यक्त किया ।


दो साल बाद भी निर्भया की मां इंसाफ का इंतज़ार कर रही है, देश को खेद है।



भारत सरकार में मंत्री साध्वी निरंजान ज्योति को भी खेद है । कहाँ तो माननीय मंत्री जी भारतीय होने की एक नई परिभाषा मुल्क को समझा रही थीं । एसी गाथा गढ़ी कि शब्द भी शर्मिंदा हो गए । कहा, जनता तय करे कि वो रामज़ादों को सत्ता सौंपेंगी  या हरामज़ादों को । यानि हर हिंदू रामज़ादा है । और जो रामज़ादा नहीं है वो हरामज़ादा है ।


अवाक , खामोश , बद्हवास , सुनिए । और सोचिए कि कि इस देश को चलाने वालों की सोच क्या है । सोच की गंगा अगर सूखने लगे तो संभालिए खुद को , क्योंकि साधवी इस देश की एकमात्र गौरवशाली वक्ता नहीं हैं ।



ममता बैनर्जी भी बोलीं और बोलीं तो बांस को शर्मिंदा कर दिया । भद्रलोक इस अभद्रता पर आवाक था । नज़रें झुक गईं। ममता बैनर्जी बांस के नायाब इस्तेमाल पर आमादा थीं। मुख्यमंत्री की भाषा पर लोग गुस्से में थे। ममता की पार्टी के सांसद तापस पाॅल तो रेप को राजनीतिक हथियार बनाने की बात पहले ही कर चुके थे ।भाषा की इस हिंसा पर  बंगाल को गुस्सा तब भी आया था। लेकिन फिर खेद पर जाकर मामला रफा दफा हो गया ।


लेकिन ना ये कोई पहला मौका है ना आखिरी ।


16 दिसंबर हो या 5 दिसंबर , धीरे धीरे ये देश एक अंतहीन अफसोस की श्रंखला में उलझ गया है। जन आक्रोश सत्ताधारियों के लिए सिर्फ  एक गुज़रता तूफान है । जैसे 16 दिसंबर वाला गुस्सा एक खतरनाक किस्म के मौन में बदल गया और निर्भया की मां आज भी इंसाफ के इंतज़ार में है । उनका दर्द समझिए । कहती हैं मेरी बेटी दो बूंद पानी के लिए सड़क पर तरसती रही , उसके गुनहगार आज दो साल बाद भी जेल में दूध रोटी खा रहे हैं । इंडिया गेट वाला गुस्सा कितना हल्का साबित हुआ । तारीखों में उलझे इंसाफ और वोट के लालच में लिपटी राजनीति ने जकड़ लिया है देश को ।प्रधान सेवक का ये देश ना निर्भया की मां के आंसू पोछ पया ना शहीद संकल्प शुकला की मां के ।


 निर्भया की जान चली गई हम अपनी व्यावस्था में जान नहीं फूंक पाए। पिछले 6 महीनों में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद भी निर्भया कांड में एक बार भी सुनवाई नहीं हुई है । जिसे देश ने प्रतीक बनाया , जब उस केस में भी इंसाफ नहीं तो बाकियों का क्या। निर्भया के शरीर के चीथड़े कर दिए आरोपियों ने और अब मुझे ये कहने में ज़रा भी संकोच नहीं कि एक लापरवाह और सुस्त न्याय व्यवस्था ने कदम कदम पर न्याय का गला घोट दिया है । वो न्याय जो नर्भया का था , वो न्याय जो उसकी मां का है, इस देश की आधी आबादी के आजादी से जीने के अधिकार का है ।


झाड़ू उठाईए हाथ में । कीजिए खूब सफाई । सड़क का कूड़ा तो फिर भी हट जाएगा । लेकिन एक स्वच्छता बाकी है । एक अभियान और शुरू कीजिए, स्वच्छ सोच की।


13 comments:

  1. कौन तय कर सकता है ?? पूरे देश में मोदी ने घूम घूम कर ये तो बताया कि अच्छे दिन आएंगे लेकिन ये बताना भूल गए कि चाहे अच्छे दिन आने में देरी हो जाये लेकिन माफ़ी मांगने और गालियां देने के सिलसिले में देरी नही होगी। एक जनादेश जो अपनेआप में इतिहास है ,क्या यही है उस जनता के वोट की कीमत?

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  2. अंजना जी मै आपके ब्लॉग से सहमत हूँ, लेकिन मै देख रहा हूँ की अगर कोई हिन्दू कुछ बोलता है तो आप बात का बतंगगर बना देती है, जैसे की साध्वी वाली बात पे बवाल हुआ था लेकिन कल उत्तर प्रदेश के धर्मगुरु ने श्री नरेंदर मोदी जी और अखिलेश जी को सरेआम धमकी दी थी. कल संसद में इस बात को लेकर कोई बहस नही हुई और न ही आजतक ने दिखाया। क्या प्रधानमंत्री जी धमकी देना देश को गली देने के सामान नही है. माना की निर्भया को अभी इन्साफ नही मिला लेकिन आजतक मैंने इतनी तत्परता से कभी टुंडा,यासीन भटकल और सवर्गीय अजमल कसाब के किये इन्साफ मांगते नही देखा।aapko पता होगा की मुंबई हमले में न जाने कितने माँ के लाल मरे थे ,न जाने कितने फौजी भाइयो ने अपने प्राण दे दिए थे । अगर आप सच मे देश भक्त हो तो आज ही इन आतंकवादियों की फांसी की मांग करके भारत वासियो को इन्साफ दिलाये। मैं मान जाउगा की आप को और आपको भी रामजादो में गिनती करने लगूंगा। (जय हिन्द जय भारत) रामजादा।।।।

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  4. शिवकुमार यादव, ड्राईवर - दिल्ली में एक बलात्कार का अरोपी।निहाल चंद मेघवाल, केंद्रीय मंत्री- गंगानगर में हुए सामूहिक का आरोपी। क्या न्याय व्यवस्था दोनों मामलो में समान है?...
    http://drrakeshparikh.com/rapist-yadav-popitician/

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  6. अंजना जी मै आपके ब्लॉग से सहमत हूँ, लेकिन मै देख रहा हूँ की अगर कोई हिन्दू कुछ बोलता है तो आप बात का बतंगगर बना देती है, जैसे की साध्वी वाली बात पे बवाल हुआ था लेकिन कल उत्तर प्रदेश के धर्मगुरु ने श्री नरेंदर मोदी जी और अखिलेश जी को सरेआम धमकी दी थी. कल संसद में इस बात को लेकर कोई बहस नही हुई और न ही आजतक ने दिखाया। क्या प्रधानमंत्री जी धमकी देना देश को गली देने के सामान नही है. माना की निर्भया को अभी इन्साफ नही मिला लेकिन आजतक मैंने इतनी तत्परता से कभी टुंडा,यासीन भटकल और सवर्गीय अजमल कसाब के किये इन्साफ मांगते नही देखा।aapko पता होगा की मुंबई हमले में न जाने कितने माँ के लाल मरे थे ,न जाने कितने फौजी भाइयो ने अपने प्राण दे दिए थे । अगर आप सच मे देश भक्त हो तो आज ही इन आतंकवादियों की फांसी की मांग करके भारत वासियो को इन्साफ दिलाये। मैं मान जाउगा की आप को और आपको भी रामजादो में गिनती करने लगूंगा। (जय हिन्द जय भारत) रामजादा।।।।

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  7. आपका ब्लॉग पढकर मे काफी प्रभावित हुआ । वैसे आगर हम कहे तो राजनिति की डिक्शनरी मे भाषा शैली जैसी चीज़ रही ही नही। हमे भी खेद है की हम इन जैसे भाषाओ के धुंरन्धर को चुना। खैर छोडिए निर्भया की बात से हमे इतना दुख होता की हम इसकी एक मिसाल नही बना पाए ताकि को ये लोग घिनौना जुर्म कर ना सके लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था ने तो इसे ठंडे वस्ते मे ही डाल दिया । उसकी माँ की पुकार ना सरकार सुन रही है ना कानून बस इंसाफ का इंतेजार कर रही । यहां तो प्रधान सेवक अपने ही मंत्रीयों को बचाते फिर रहे है पर उस माँ को इन्साफ देने के लिए कुछ नहीं कर रहे और इनही मामलों मे प्रधान सेवक मौन धारण करके बैठे हुए है । वाह रे वाह सत्ता तेरी अजब है लीला जो ना पाए वो शोर करे और जो पाए वो मौन धारण करे ।

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  8. आपका ब्लॉग पढकर मे काफी प्रभावित हुआ । वैसे आगर हम कहे तो राजनिति की डिक्शनरी मे भाषा शैली जैसी चीज़ रही ही नही। हमे भी खेद है की हम इन जैसे भाषाओ के धुंरन्धर को चुना। खैर छोडिए निर्भया की बात से हमे इतना दुख होता की हम इसकी एक मिसाल नही बना पाए ताकि को ये लोग घिनौना जुर्म कर ना सके लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था ने तो इसे ठंडे वस्ते मे ही डाल दिया । उसकी माँ की पुकार ना सरकार सुन रही है ना कानून बस इंसाफ का इंतेजार कर रही । यहां तो प्रधान सेवक अपने ही मंत्रीयों को बचाते फिर रहे है पर उस माँ को इन्साफ देने के लिए कुछ नहीं कर रहे और इनही मामलों मे प्रधान सेवक मौन धारण करके बैठे हुए है । वाह रे वाह सत्ता तेरी अजब है लीला जो ना पाए वो शोर करे और जो पाए वो मौन धारण करे ।

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  9. बचपन से ही ऐसा सिखाया गया है ,जब बचपन में बहार जाता था तो घरवाले कहते थे किसी अजनबी के पास मत जाना, किसी अजनबी से कुछ मत खाना , कोई अजीब , ख़राब सी चीज़ दिखे तो वहा मत जाना! यही तालीम स्कूल में भी मिली! अब सोचता हूँ उस दिन जब निर्भया और उसके दोस्त ने मदद मांगी तो लोगों ने मदद नहीं दी, कयूं नहीं दी सायद उने भी बचपन से यही सिखाया गया है जो मुझे सिखाया गया है , तोह वह फिर दोषी क्यों है, वह कयूं नहीं है दोषी जीनो ने यह सब सिखाया है ! हम सब को बचपन से यही सिखाया गया है! आखिर उन लोगो को जब यह पता लगा होगा की जिनकी हम ने मदद नहीं की गाड़ी रोककर वो दोनों तो पीड़ित थे, गाड़ी रोककर उन लोगों ने सोचा होगा के कही यह दोनों नाटक तो नही कर रहे है हमे फ़साने के लिए हो सकता है के इनके साथी छुपे हों इधर उधर, हम इनकी मदद के लिए जाये और वह हम पे हमला कर दे, जब उने यह पता चला होगा की हम गलत थे तोः उने शर्मिन्दिगी और उनकी आत्मा ने उने कचोटा होगा वह रोवे होंगे सब के सामने नहीं तो सोते वक़्त छत को देकते हुवे ! गलत हमारी सोच है जैसा के तुमने बोला है सायद यह इसलिय है की हम स्वार्थी है और हमे यही सिखाया गया हो!..... टीवी भी तो शायद यही सिखाता है हमे, दो अजनबी सड़क पर लेटे है अचानक एक कार आकर रुकती है ड्राइवर मदद के लिए कार से बाहर निकलकर उनकी मदद के लिए आगे बढ़ता है की अचानक आस पास से कुछ लोग उसे दबोच लेते है और ज़मीन में गिरे दो लोग अचानक से उठ जाते है और अपने कपड़े साफ़ करते है और वह आदमी ठगा सा महसूस करता है और फिर उसकी मौत हों जाती है, और क्राइम पेट्रोल का एंकर आकर हमे सावधान होने के हिदायत देता है और हम सब सोफे में बैठकर एक दूसरे से कहते है के अगर वह ड्राइवर गाड़ी से बाहर नहीं आता तो बच जाता ! आखिर तुम ही बताओ की गलत कौन है. हम उल्जे हुवे है बहुत सारी उलजनो में, हमे हर उल्जन उल्जाती है हर समस्या का समाधान निकलने में.

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  10. खबरों की एक तरफा वकालत कर कर के मीडिया का खासतौर पर आजतक का स्तर इतना गिर गया है की अब आजतक चैनल पर कोई खबर सुनने को मन ही नहीं करता। और यकीन मानिये अंजना जी स्पेशल वो खबरें जिनको आप एंकर करती हो। अब तो बच्चा बच्चा ज़ान गया है की आपका एकमात्र उद्देसय सिर्फ मोदी सरकार को ही निशाने पर रखना है। और ये काम आप काफी पहले से करती आ रही हैं। मै BJP का सपोर्टर नहीं था किन्तु आपकी खबरो ने बना दिया। आप जाने अनजाने मोदी के पक्ष मे ही माहौल बना रही हैं।

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  11. खेद का खेल अक्सर खेद पर भारी है

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  12. Hum nafarat kar te he saare sick''ular se aur humein khed he...

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  13. अंजना जी यही हमारे देश की राजनीति की कड़वी सच्चाई है ..चुनाव से पहले तो नेता ऐसे दिखाई देते है जेसे वो जनता की सेवा के लिए ही बने है .पर उनका असली चेहरा चुनाव के बाद ही दिखाई देता है..जनता को लगा की मोदी अच्छे प्रधानमन्त्री बनेगे और देश का विकास करेंगे पर वो ये भूल गए की मोदी ही भाजपा में अलग चेहरा है बाकी तो वही पुराना कीचड़.| आज न्यूज़ चैनल्स की वजह से देश के सामने इन लोगो की सचाई आ जाती है अगर आप जेसे न्यूज़ एंकर की मेहनत न हो तो ये राजनीति वाले देश को बेच डालते ..आपको ट्विटर पर ऐसे ट्वीट्स आते होंगे जिसमे आपकी निष्पक्षता पर सवाल उठाते होंगे.और यह स्वभाविक है अगर आप हाफ़िज़ सईद के विपक्ष में बोलेगी तो आपको हाफ़िज़ के समर्थको का विरोध मिलेगा और पक्ष में बोलेंगे तो हिन्दुस्तान की जनता का विरोध ..तो ये स्वभाविक है की आपकी हर खबर को लोग समर्थन देंगे तो कुछ उसका विरोध.पर आप इन पर ध्यान नही देती जो की अच्छी बात है इससे आपको एंकरिंग करने में कोई परेशानी नही रहती ..अंत में इतना ही कहूँगा की राजनीति में खेद के अलावा कुछ नही हो सकता

    नवदीप शेखावत
    राजस्थान
    @NSS_Shekhawat on twitter

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