आओ खेद करें
प्रधान सेवक के देश में खेद की खेती शुरू हुई है। खेद यानि अफसोस ।
कैब में बलात्कार हुआ , गृहमंत्री ने इसे शर्मनाक बताया
सरहद पर शहीद हुए संकल्प की चिता तिरंगे में लिपटी मां की गोद में पहुंची , सरकार ने दुख व्यक्त किया ।
दो साल बाद भी निर्भया की मां इंसाफ का इंतज़ार कर रही है, देश को खेद है।
भारत सरकार में मंत्री साध्वी निरंजान ज्योति को भी खेद है । कहाँ तो माननीय मंत्री जी भारतीय होने की एक नई परिभाषा मुल्क को समझा रही थीं । एसी गाथा गढ़ी कि शब्द भी शर्मिंदा हो गए । कहा, जनता तय करे कि वो रामज़ादों को सत्ता सौंपेंगी या हरामज़ादों को । यानि हर हिंदू रामज़ादा है । और जो रामज़ादा नहीं है वो हरामज़ादा है ।
अवाक , खामोश , बद्हवास , सुनिए । और सोचिए कि कि इस देश को चलाने वालों की सोच क्या है । सोच की गंगा अगर सूखने लगे तो संभालिए खुद को , क्योंकि साधवी इस देश की एकमात्र गौरवशाली वक्ता नहीं हैं ।
ममता बैनर्जी भी बोलीं और बोलीं तो बांस को शर्मिंदा कर दिया । भद्रलोक इस अभद्रता पर आवाक था । नज़रें झुक गईं। ममता बैनर्जी बांस के नायाब इस्तेमाल पर आमादा थीं। मुख्यमंत्री की भाषा पर लोग गुस्से में थे। ममता की पार्टी के सांसद तापस पाॅल तो रेप को राजनीतिक हथियार बनाने की बात पहले ही कर चुके थे ।भाषा की इस हिंसा पर बंगाल को गुस्सा तब भी आया था। लेकिन फिर खेद पर जाकर मामला रफा दफा हो गया ।
लेकिन ना ये कोई पहला मौका है ना आखिरी ।
16 दिसंबर हो या 5 दिसंबर , धीरे धीरे ये देश एक अंतहीन अफसोस की श्रंखला में उलझ गया है। जन आक्रोश सत्ताधारियों के लिए सिर्फ एक गुज़रता तूफान है । जैसे 16 दिसंबर वाला गुस्सा एक खतरनाक किस्म के मौन में बदल गया और निर्भया की मां आज भी इंसाफ के इंतज़ार में है । उनका दर्द समझिए । कहती हैं मेरी बेटी दो बूंद पानी के लिए सड़क पर तरसती रही , उसके गुनहगार आज दो साल बाद भी जेल में दूध रोटी खा रहे हैं । इंडिया गेट वाला गुस्सा कितना हल्का साबित हुआ । तारीखों में उलझे इंसाफ और वोट के लालच में लिपटी राजनीति ने जकड़ लिया है देश को ।प्रधान सेवक का ये देश ना निर्भया की मां के आंसू पोछ पया ना शहीद संकल्प शुकला की मां के ।
निर्भया की जान चली गई हम अपनी व्यावस्था में जान नहीं फूंक पाए। पिछले 6 महीनों में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद भी निर्भया कांड में एक बार भी सुनवाई नहीं हुई है । जिसे देश ने प्रतीक बनाया , जब उस केस में भी इंसाफ नहीं तो बाकियों का क्या। निर्भया के शरीर के चीथड़े कर दिए आरोपियों ने और अब मुझे ये कहने में ज़रा भी संकोच नहीं कि एक लापरवाह और सुस्त न्याय व्यवस्था ने कदम कदम पर न्याय का गला घोट दिया है । वो न्याय जो नर्भया का था , वो न्याय जो उसकी मां का है, इस देश की आधी आबादी के आजादी से जीने के अधिकार का है ।
झाड़ू उठाईए हाथ में । कीजिए खूब सफाई । सड़क का कूड़ा तो फिर भी हट जाएगा । लेकिन एक स्वच्छता बाकी है । एक अभियान और शुरू कीजिए, स्वच्छ सोच की।